STORYMIRROR

ritesh deo

Tragedy

4  

ritesh deo

Tragedy

मां बेटी संवाद

मां बेटी संवाद

1 min
370

----माँ-बेटी का संवाद ----


अरे वो माँ सुन तो सही........ 

आज एक बार फिर से, 

अपनी ममता का आँचल ओढ़ा दो माँ।


इस ममता के आँचल में, 

अपनी बेटी को छुपा लो माँ ।


मुझे नहीं जाना किसी और के घर, 

अपने घर को छोड़कर माँ ।


हर बेटी को पराया-पराया कहकर, 

क्यों किसी पराये घर में भेजना माँ ।


जिस घर में जन्म लेती हैं बेटियाँ, 

जिस घर का हर कोना-कोना , 

हर घर के आँगन को, 

अपनी हँसी, ठिठोलियों की खुशियों से

भर देती हैं बेटियाँ, 

उसी घर को छोड़कर 

क्यों जाती हैं बेटियाँ।


ये कैसी रीत परायी है, 

ये रीत किसने बनायी है, 

ये रीत हमें न समझ आयी है।


सुनो मेरी लाडली....... 

ये दुनियाँ ने रीत बनायी है, 

ये रीत बड़ी पुरानी है, 

जो सदियों से चलती आयी है, 

इस रीत को हम सबको अपनानी है ।

              


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy