धूम्रपान
धूम्रपान
अपने आस-पास देखा मैंने बुना हुआ एक जाल,
देखो मेरे देशवासियों अपना देश हो रहा बेहाल।
हर शख्स है और इस जमाने में उदास,
नहीं बैठता कोई यहाँ किसी के पास।
इसलिए कुंठित होकर मनुष्य धुएँ में डूबा जाता है,
देश का भविष्य यहाँ अंधकारमय नजर आता है।
जाने स्वयं को क्यों बेमोल समझता जाता है,
अपनों के संग भी तू खिलवाड़ करता जाता है।
जितना तुम्हारे लिए हानिकारक है यह धुआँ,
मत समझो तुम्हारे अपनों को छोड़ता है अनछुआ।
साफ शब्दों में लिखा यहाँ है होता,
कर्क रोग को देता है यह न्यौता।
फिर भी तुमको समझ ना आती,
बुद्धि क्यों इतनी फिर जाती।
जहर बनकर यह तुम्हारे फेफड़ों को खा जाएगा,
तुम पकड़ोगे ऊँगली इसकी यह तुम्हारा पहुँचा पकड़ता जाएगा।
और क्या इसकी महानता का मैं तुमसे कहो बखान करूँ,
छोड़ कर संग इसका क्यों ना तुम खुद को जीवन प्रदान करो।