कितना यकीन था और है
कितना यकीन था और है
कितना यकीन था और है,
मुझे तेरी मोहब्बत पर,
और तूने मुझे छोड़ दिया,
अवसाद मेरी गुरबत पर।
करले तू जी भर के रुसवा मुझे,
और कुछ भी नहीं आता है तुझे,
जिस सांस तक तू समझे प्यार ,
उस दम तक जीना है मुझे यार।
सभी कुछ न कुछ देकर जाते हैं,
जिंदगी में जो अपने बनकर आते हैं,
कोई खुशी कोई गम देता है शौक से,
जिसकी चाहत हम बन जाता है।
