STORYMIRROR

Umesh Shukla

Tragedy

4  

Umesh Shukla

Tragedy

तीखा सूरज

तीखा सूरज

1 min
301

तीखा सूरज बरसा रहा आग

अनदेखी से विलुप्त हुए अनेक कूप तालाब


तंत्र सजाए तरक्की के ख्वाब

निकाय चुनाव दावतों का दौर


समर्थकों के नारों में गुम पीड़ाएं चहुंओर

विकास को मिलता नहीं ठौर


सच बोलना सबसे बड़ी खराबी

आसपास रहने वाले भी हो जाते तेजाबी


फुर्र सुकून, रिश्तों की बर्बादी 

हरदिल अजीजों की बढ़ती आबादी


सरकारी विभागों में हाबी है धक्कामार परिपाटी

शिकायतें हाथ ले हलकान फरियादी


हर तरफ चुनाव का झुनझुना

कई को इंतजार जीत का बहाएं पसीना

समर्थक फरमाएं छेड़ो धुन नगीना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy