विरह पीड़ा
विरह पीड़ा
रिद्धिमा अब रूठ गई और नाराज हो कर अपने पीहर चली गई,
दुःखी थी वो अपने पति से, वो प्रेशर कुकर की तरह चिलाता था,
वो यमराज जैसा दिखता था, कोई भी लखन सही नहीं थे उसके,
अबकी बार लेने भी आए तो नहीं जाऊगी सबको समझा दिया.
कुछ मेरा माथा ख़राब और कुछ रिश्तेदारो ने कर दिया...
अब मे बिल्कुल शीला थी चठान बन गई कोई भी लालच ललचा नहीं पाएगा,
पति को खाली हाथ जाना पड़ेगा, मगर उसने खूब समझया
मेरी हर बात माननेगा जैसा कहुगी वैसा ही करेगा...
लेकिन मैने तो दहेज का केश लगा दिया कोट कछहरी का चक्कर लगा दिया
मुझे बड़ा मजा आ गया झूठा केस जो कर दिया....
घरके, रिस्ते नाते सभी खुश मजा आ गया...अब नानी याद आएगी बच्चू को....
पचास लाख से एक भी कम नहीं लेगे, सभी एक साथ बोले.....
धोखा दिया मैने.... झूठा केस हार गई मे, पति जीत गया,
दूसरी शादी करली उसने.... तलाक को अब छ साल बीत गए....
मै घर मे बैठी हू, चार पांच लड़के प्यार करते थे ,
मै इतरथी थी वो टाइमपास करके चले गए....
आज मै सोचती हू क्यों मै बहकावे मे आगईं,
पति आया था मान जाती, किस घर मे कहासूनी नहीं होती....
एक दो बच्चे मेरे भी होते, पति के साथ खुशी खुशी रहती,
सहेलीयो मे इज्जत होती.... मसवरा सब देंगे आखिर मे मेरी तरह जिंदगी बर्बाद हो जाएगी..... पति परमेश्वर मुझे माफ कर देना..... अगले जन्म मे अच्छी पत्नी बनूगी......... तुम्हारी रिदिमा
