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PRADEEP TIWARI

Abstract

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PRADEEP TIWARI

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चार का दम

चार का दम

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नमस्कार दोस्तों,


आज का चिंतन इस प्रकार है,


चार का दम,


चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात,


चार किताब पढ़ क्या ली खुद को कलेक्टर समझता है,


चार पैसे कमाने पड़ेंगे तब पता चलेगा,


आखिर हमारी भी चार लोगों में इज़्ज़त है,


यह बात चार लोग सुनेंगे तो क्या सोचेंगे,


चार पैसे में बिकती आज के दौर की ईमानदारी,


चार दिन की आई हुई बहू के ऐसे तेवर,


वो आई और चार बाते सुना के चली गई


तुमसे क्या चार कदम भी नहीं चला जाता?


आँखें चार हो गई,


चार दिन तो दुकान में टिक कर बैठ जाओ,


और अंत में चार लोगों के कंधों पर जाना है |


तो ऐसा दोस्तों यह हम आए दिन सुनते रहते है...


नमस्कार.



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