तेरे ख्वाब
तेरे ख्वाब
मेरा नाम हैं सीमा,
मैं तेरे ही ख्वाबों में डूबी रहती हूँ,
मेरी हर रात तेरे ख्यालों से सनी रहती है,
हर सुबह जीने की इच्छा जागती है,
नहा के जब मैं तर ब तर होती हूँ तो,
तेरा एहसास मुझे इस कदर अंदर निचोड़ता है,
इस कदर बस गए हो मेरी रग रग में तुम,
कि मेरे हर लफ्ज़ में होती है, बस बात तेरी...
दिन तो जैसे कैसे कट जाता है, तेरे इंतजार में,
जैसे तैसे साझ ढलती है तेरे कदमों की आहट में,
मेरा रोम रोम खिल जाता है, करती हूँ श्रृंगार
खुब सजती हूँ तेरे प्यार में इस कदर,
भीगे- भीगे तन पर कसी हुई सिफोन साड़ी और
बिखरे बाल, महकती खुशबू और वो पल....
वो पल पल पिघलना, वो सिहरन, वो..वो.. वो.. बस,
नदी का सागर से मिलना इतना रोमांटिक न होगा
जितना आज सीमा का प्रदीप से होगा... तेरे ख्वाब..

