काम वासना
काम वासना
नमस्कार दोस्तों
आज का चिंतन......
मनुष्य से बड़ी उसकी मनुष्यता है,
आज के दैनिक अखबारों की सुर्खियाँ........
सुबह सुबह ऐसी नकारात्मक खबरों को पढ़
कर मेरा मन विचलित हो गया........
अभी के आधुनिक मानव अपनी वासना को
अपने मनोबल से आज़ाद नहीं कर सकता है....
क्योंकि इसका एक बड़ा कारण मुझे यह समझ
में आया है कि.........
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर मन की
काम वासना का कही न कही हमारा
"अन्न दोष " है........
चाहे मानो य, न मानो लेकिन सो टका सत्य है...
"जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन "
यह कहावत प्राचीन है लेकिन आज के
समय मे सटिक बेढ़ती है......
अर्थात यदि हमारा आहार, खान पान और
दैनिक दिनचर्या अनियमित व असंस्कारी है
तो मन की काम वासना को नियंत्रण नहीं किया
जा सकता है......
मनुष्य का व्यक्तित्व निर्माण उसके आस पास
की परिस्थितियों का प्रभाव अत्यंत महत्व
रखता है,
कुछ शब्दों के आधार पर मनुष्य के सच्चारित्र
के सिद्धांतों को समझाया नहीं जा सकता है...
अतः मेरे विचार से
आहार की शुद्धि जरुरी है....
लेकिन यह सत्य है या दुर्भाग्य है....
की बढ़ती हुई जनसंख्या में आहार मिलना
ही चुनौतीपूर्ण है, शुद्ध की बात तो कोसो दूर है...
फैशन के दौर में गारंटी की इच्छा करना
मूर्खता है...
तो दोस्तों ये मन की काम वासना कैसे दूर होंगी?????
