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Ranjeeta Dhyani

Tragedy

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Ranjeeta Dhyani

Tragedy

गुप्त समाज

गुप्त समाज

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समाज का आधार व्यक्ति

कल्याण भाव से रखते हैं

ना जाने फिर इसमें क्यों ?

दुराचारी नित बढ़ते हैं....


विशाल संरचना होती इसकी

विभिन्न वर्ग, जाति, संस्कृति से

प्रत्यक्ष समाज बन रहा गुप्त है

समाज खंडित हो रहा विकृति से


सुंदर, सुशील समाज में

यूं गोरख धंधे उपज रहे हैं

कहीं तश्करी मानव अंगों की

कहीं नन्हीं गुड़िया सुलग रही हैं

हो रही है कहीं रिश्वतखोरी

कहीं सामान की हो रही चोरी

कहीं वैश्या व्यापार हो रहा है

कहीं मानव लाचार हो रहा है


दिखावे का आधार बन गया समाज

अमीर बनने का सपना लगा आसान

हो रहा मनुष्य विसंगतियों का शिकार

ले रहा समाज अप्रत्यक्षता का आकार


नैतिक मूल्यों का हो रहा ह्रास

वर्तमान गर्त में, भविष्य निराश

भयावह स्थिति का यह संकेत है

गुप्त समाज का बढ़ता खेल है

समाज को इससे बचाना होगा

नैतिकता को बढ़ाना होगा....


ना बढ़ें निंदनीय कर्मों की ओर

जीवित रखें मानवता की डोर।


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