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Ranjeeta Dhyani

Tragedy

4  

Ranjeeta Dhyani

Tragedy

खुशियों की चाबी

खुशियों की चाबी

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खुशियों की चाबी, न जाने कहां गुम हो गई ?

अपनों की तलाश, जैसे खत्म ही हो गई....।


रह गया ना माहौल, ना समाज बचा कहीं....।

असुरक्षित इस ज़माने में, साज अब रहा नहीं।।


बिगड़ते हालात और बिगड़े यहां रिश्ते हैं।

महंगाई की मार से, हाल बहुत ही खस्ते हैं।।


भुखमरी की कगार पर, आज इंसान खड़ा है।

बेरोजगारी से जूझता, मौत के मुंह में पड़ा है।।


बिना हैसियत के आजकल, कोई रिश्ता नहीं रखता।

घर में किसी निर्धन का आना, अच्छा नहीं समझता।।


प्रेम, प्रतिष्ठा, सम्मान सब अमीरी का प्रतीक बन गया।

दिखावे का संसार इसमें, गरीब एक फकीर बन गया।।


चिंतन करते-करते मानव, चिंतित-सा रहने लगा है।

ढूंढ़ न पाता सुख कहीं भी, भयभीत-सा रहने लगा है।।


लड़ाई-झगड़े में ही, मानो सुबह से शाम अब होने लगी।

ना परवाह किसी की रही, ये दुनिया स्वार्थी होने लगी।।


मानो या ना मानो तुम यारो, परिस्थिति ये बहुत विकट है।

इसकी निरन्तर बढ़ती गति से, मानवता का अंत निकट है..।।


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