महामारी की थी बात
महामारी की थी बात
कभी स्कूल के दिनों की याद में बैठे आँखे मिंचे,
याद आती खाली कक्षा, खाली कुर्सियां, खाली बेंचे !
याद आ गए वो बड़े बड़े दुख भरे दिन और रात,
ज़ब दौर था महामारी का परेशानी की थी बात !
शुक्र है कि अब वो दिन नहीं रहे पहले की तरह,
जीवन बदला है अब उस दौर से और हुआ बेहतर !
अगर नियमित व अनुशासित हो क्रिया कलाप :
तो कई परेशानियों से बचकर रहेंगे मैं और आप !
लें एक संकल्प की स्वच्छता स्वास्थ्य का रखें ध्यान :
इस कदम से अपने ही साथ कर पाएंगे जन कल्याण !