क्यों खुद को भूल गई मैं
क्यों खुद को भूल गई मैं
सबको मानते - मानते ,
कब खुद से रूठ गयी मैं,
क्यों अपनी बात रखना भूल गयी मैं।
सबकी सुनते-सुनते,
कब खुद से दूर हो गयी मैं,
क्यों बोलना भूल गयी मैं।
सब कुछ समेटे -समेटे,
क्यों खुद बिखर गयी मैं,
कब इतना मजबूर हो गयी मैं,
सब की खुशियों का ध्यान रखते- रखते,
खुद की खुशियों से हो गयी अनजान,
क्यों हँसाना भूल गयी मैं।
सेहमी -सेहमी क्यों,
खुद मैं सिमट गयी मैं,
क्यों लोगो से गुलना- मिलना भूल गयी मैं।
यह सोच रखते -रखते,
एक दिन आएगा,
जब सब मुझे समझेंगे,
क्यों कुछ न बदला,
सिवाय मेरी सोच के।