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Taj Mohammad

Abstract Tragedy

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Taj Mohammad

Abstract Tragedy

इक नज़र।

इक नज़र।

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इक नजर ही देख लेता तुम्हें जाने से पहले।

बुला लेते मुझे यूँ किसी भी बहाने से पहले।।1।।


हर आंख-आंख की पसंद हो जरूरी तो नहीं।

तुम्हें पूछना था उससे रिश्ता लगाने से पहले।।2।।


तोहमत न लगा मुझ पे सिलसिला तोड़ने का।

तुम्हें सोचना था ये तो दिल दुखाने से पहले।।3।।


है हर नज़र में अब बस मेरा ही घर शहर में।

जो मकान था दीवार-ए-दर सजाने से पहले।।4।।


क्या तहरूफ़ कराना मुझसे उस मेहमाँ का।

उसको जानता हूं मैं बहुत जमाने से पहले।।5।।


रूह-ए-सुकून छिन जाता हैं इस इश्क में।

तुम्हें जान लेना था दिल लगाने से पहले।।6।।


हर सम्त अंधेरा है जाने रास्ता किस तरफ है।

पता रखना था चिरागे रोशनी बुझाने से पहले।।7।।


क्या हुआ जो तुम हो गए किसी गैर के अब।

इसका तो पता था मुझे तुम्हारे जाने से पहले।।8।।



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