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Taj Mohammad

Abstract Tragedy

4  

Taj Mohammad

Abstract Tragedy

खुदा से क्या क्या मांगू।

खुदा से क्या क्या मांगू।

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मेरी परेशानियों का सबब न पूछ तुझको मैं क्या-क्या बताऊं।

फेहरिस्त है यह बड़ी लंबी मैं मांगूँ तो खुदा से क्या-क्या मांगूँ।।1।।


बेबस है मेरी जिंदगी बड़ी कुछ भी कर सकती नहीं।

बदगुमानियाँ है बहुत मैं किसी को समझाऊं तो क्या-क्या समझाऊं।।2।।


इक खुदा है देने वाला वह भी रूठा है अब तो मुझसे।

कोई तो बता दे मैं फरियाद लेकर जाऊं तो कहां जाऊं।।3।।


चारों तरफ है मेरे अपनों की ही हिकमत भरी नजर।

मैं उठा कर सर नजरें मिलाऊं तो किस-किस से मिलाऊं।।4।।


कोई क्या समझेगा मेरा दर्द जो है दिया मेरे अपनों का।

ये घाव तो है मेरी रूह के मैं दिखाऊं तो इन्हें कैसे दिखाऊं।।5।।


मुझे ना पता जिंदगी मेरी जानें कब से है सवाल बन गई।

मिलता नहीं जवाब कहीं मैं किसी को बताऊं तो क्या-क्या बताऊं।।6।।


मेरी तकदीर में जो लिखी है कहानी मेरी सारी जिंदगी की।

पढ़ना इसे है मुश्किल गर मैं सुनाऊं तो क्या-क्या सुनाऊं।।7।।


एक वक्त था वह भी जब चारों ओर मेरे रिश्तों का शोर था।

पर अब तो तारी हैं यहाँ खामोशियां कहीं गुमनाम ना हो जाऊं।।8।।


मैं जानता हूं ये सब मेरे ही गुनाहों का सिला मुझको है मिला।

पर कोई तो फिर से इक बार और साथ दे दे मैं फिर से संवर जाऊं।।9।।



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