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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Tragedy

जाने क्या बात है कि नींद नहीं

जाने क्या बात है कि नींद नहीं

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जाने क्या बात है कि नींद नहीं आती 

एक तेरी याद है जो कभी नहीं जाती 

ख्वाबों में सजती हैं बस तेरी महफिलें 

एक तू है जो कभी मिलने नहीं आती 

अश्कों ने भी अब साथ छोड़ दिया है 

मुस्कुराहटों ने जैसे नाता तोड़ लिया है 

बेचैनियों से हमने रिश्ता जोड़ लिया है

पत्थर दिल जहां से सिर फोड़ लिया है 

मोगरे में अब तेरी वो महक नहीं बसती 

चांदनी में हुस्न की चांदी नहीं चमकती 

तेरे संग गुजरी शाम सिंदूरी नहीं सजती 

तनहाइयों में ही अपनी हर रात गुजरती 

कितनी बातें हैं जो तुझसे कह नहीं पाया 

दिल तेरी जुदाई का बोझ सह नहीं पाया 

वक्त के दरिया में "हरि" बह नहीं पाया 

तेरे बिना अकेले सनम मैं रह नहीं पाया। 


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