जगमगाता शहर
जगमगाता शहर
हर रोज़ एक अलग सी मसरूफियत रहती है,
हर किसी के ज़हन में बस पैसों की शोर रहती है,
ना ठहरी है कोई किसी के लिए उन दिनों में,
बस दीवाली पर ही सबकुछ भुलाकर मेल मिलाप रहती है।
चिड़चिड़ापन इंसान को एक सा खोखला बना देता है,
बस दीवाली के दीयों की रोशनी इंसान में एक नई ऊर्जा भर देता है,
वो खुशियों की जुस्तजू में फिरता मुसाफिर,
घर लौटकर खुद को सुकून तोहफे में देता है।
दीवाली बस श्री राम के लौट आने का दिन नहीं होता अयोध्या में,
ना जाने कितने बेबस भटकते बंजारे अपने घर में लौटकर आते हैं,
दीवाली बस किसी भगवान की पूजा में समर्पित दिन नहीं होता,
वो हर इंसान में इंसानियत की जन्म का शुरुआत सा होता है।
दीवाली पटाखे फोड़ कर दुनिया को अंतिम पड़ाव पर लाना सही नहीं,
खुशियां मनाओ, अपनों को गले लगाओ, परंतु परिवेश को दूषित करना नहीं,
खुदगर्ज ना होकर बाकी जीव जंतुओं की सुरक्षा करना ज़रूरी है,
वरना यह वजन वातावरण का डगमगा ना जाए कहीं।
मिठाइयां खिलाओ और गले से लगाओ अपने करीबियों को,
बैर से भरे हर रिश्ते को बस एक मुस्कुराहट से मिटाओ,
कुछ नहीं रखा इस गीले शिकवे के खेल में,
दीवाली के जैसे रोशन करो अपनी इस खूबसूरत जिंदगी को।
जगमगाता शहर जितना जँचता है इन नजरों को,
खुद की नजर में खुद को उतना ही जँचने दो,
बुराइयों की छाप ना पड़ने देना अपने मन पर,
दीवाली से मिली हर अच्छी सीख को जिंदगी में अपनाओ।
