दोस्त कहां गए
दोस्त कहां गए
वो दोस्ती, वो यारी, वो यादें सभी उन बचपन की गलियों में ही रह गए,
वो हमसे एक मुलाकात ना कर पाए क्योंकि हम आगे बढ़ गए।
वैसे तो जिंदगी काफी मशगूल रखता है हमें,
पर वक़्त भी कभी कभी पुरानी यादों को ज़हन में लाकर छेड़ देता है।
कुछ यादों का नतीजा तबस्सुम होता है तो कुछ के होते हैं आँसू,
खुदा से सवाल है कि कैसे अब उन यारों को तलाशुं।
कभी खुले मेहताब के नीचे बैठे हुए आँखों से सैलाब आ जाते हैं,
बस एक दफा उन यारों को जी भरके देखने को नज़रें बेताब हो जाते हैं।
हयात का नियम है, जो बीत गया उसे भुलाकर आगे बढ़ना ज़रूरी है,
पर क्या करें यह दिल जो मानता नहीं, इसकी भी तो मजबूरी है।