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Praveen Gola

Tragedy

4  

Praveen Gola

Tragedy

पिंजरा

पिंजरा

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ज़िन्दगी एक पिंजरा ही तो है ,
और हम सब उड़ने वाले पंछी ,
जीवन भर घोसले की तलाश में ,
हमे बाँध लेती लालच भरी रस्सी |

तमाम उम्र ये रस्सी हमे उलझाती ,
और हम इसकी बातों में बहक जाते ,
निकल ना पाते इस गृहस्थ जाल से ,
मन ही मन केवल अकुलाते जाते |

कुछ लोग इस कैद से भाग जाते ,
और अपना जीवन सफल बनाते ,
मगर आम आदमी ना भाग पाता ,
और इस पिंजरे में ही दम तोड़ जाता |

मैं भी भाग ना पाई इस पिंजरे से कभी ,
और बस ऐसे ही पंख फड़फड़ा कर रह गई ,
अपनी ही तरह कैद कर इस मासूम तोती को ,
इसकी ज़िन्दगी पर किताब लिखती रह गई |

ये कुछ दिनों तक मेरे साथ हँसी ,
मेरा दिल को एक अजीब सा सुकून दे गई ,
मगर फिर दर्द इसका ऐसा बढ़ा ,
कि अपने संग मेरी भी हँसी ले गई |

अब सवाल मुझसे मेरे मालिक ने किया ,
कि बता इस खाली पिंजरे में कौन रहेगा ?
ये तो चली गई छोड़ ये अनोखा संसार ,
क्या इस पिंजरे में अब तेरा अक्स रहेगा ?

अक्स नहीं मैं खुद भी तो इस पिंजरे की दासी ,
बस फर्क यही कि ये बेजुबां बोल ना पाई ,
मैं जुबां होकर भी जो कह ना पाऊँ ,
ये बिन जुबां होकर भी देखो सब कह पाई |

इसलिये कभी ना कैद करो स्त्री को यारों ,
वो भी छूना चाहती है ये नभ प्यारा ,
मर जायेगी वरना घुट - घुट के ऐसे ही एक दिन ,
फिर निकालते रहना उसका भी मृत शरीर सारा ||








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