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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

"गोवर्धन पूजा"

"गोवर्धन पूजा"

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जब हो गया था, बहुत अहंकार इंद्र को

तब उठा लिया था, कान्हा ने गोवर्धन को

इन्द्र ने तब गोकुल में खूब की थी, बरसा

पर वहां पर केशव कृपा का अमृत बरसा

जब हर तरफ से ही इंद्र देव गये थे, हार

त्राहि माम प्रभु तब ऐसे करने लगे, पुकार

इंद्रदेव को श्रीकृष्ण ने दिया था, क्षमादान

ओर गोवर्धन पर्वत को दिया, यह वरदान

आज से गोवर्धननाथ, मेरा एक ओर नाम

तब से चली आई है, गोवर्धन पूजा श्रीमान 

साथ ही श्री कृष्ण प्रभु ने दिया, यह संदेश

जो परहित में जीते है, लेकर कोई भी वेश

वो एक दिन बन सकते, सुरेश के भी सुरेश

परहित करने से मिटता है, अंदर का क्लेश

आज तो अन्नकूट भोग लगाते, भगवान को

जो बताता बहुत चाहते केशव, किसान को

इस दिन सजाते, संवारते, गांवों में पशु धन को

इनके बीच आतिशबाजी कर, हर्षाते मन को

यह बताता, हम खुशी में शामिल करते इनको

आज के परिदृश्य में, क्या से क्या हो गया है?

हमारी संस्कृति से पुराना स्नेह कहाँ खो गया है?

जब से आ गए, हमारे गांवो में ट्रेक्टर ही ट्रेक्टर

फिर तो मारे जा रहे है, बैल तो हर घर ही घर

बैल बचाओ, गोवंश यूं न गंवाओ, जाओ, सुधर

नही तो एकदिन, ढूंढोगे तो भी ये न आएंगे, नजर

आओ इस ठीकरा हम लोग ले, यह संकल्प

बेजुबानों गोवंशों को देंगे, हम सुरक्षा कवच

इस मनुष्य जीवन मे मजा आता है, तब

हमारी वजह से कोई चेहरा हंसता है, जब

सबको ठीकरे पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

सब लोग अपने अहंकार को पटाखों में जलाएं

एक दीपक आप उन फौजियों के लिए जलाएं

जिन्होंने हम देशवासियों की हर ली, हर बलाएं



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