भंवर
भंवर
न जाने इस भंवर मे, कैसे उलझ गई
वो नाव थी कैसे, जो सागर मे डूब गई
मैं तो निकली थी , आंचल को ओढ़े हुए
सपनो को आखों में अपने संजोए हुए
धीरे धीरे लगा मैं बढ़ रही थी आगे
पर पता नही था , कुछ ऐसा होगा आगे
जिनसे दोस्ती थी , वो दुश्मनों में हुए शामिल
अब पराए भी देखते हैं जैसे , नही मैं किसी काबिल
लोगो के किस्सों में अब नाम मेरा ही आता है
न जाने आई इन किस्सों में उन्हें ऐसा क्या मजा आता है
झूट की चादर में लिपटी कहानी बन गई हूं
किसी के धोखे की निशानी बन गई हूं
भरोसा किया जिन पे वही धोखा दे गए
अच्छाई का चेहरा लगा के रुला के चल दिए
ऐसे उलझा गए मुझे की, अब सुलझ नहीं सकती
इस झूट की तारो को तोड़कर फेक नही सकती
सच बोलना मुमकिन नहीं , झूट का असर है इस कदर
कितना बड़ा भंवर हैं जिसमे , उलझ गई मैं इस कदर
जाने मैं कब निकल पाऊंगी इस भंवर से
जाने कब मिल पाऊंगी इस रात की सवेर से
तू भी तो एक शक्ति है , दे मुझको शक्ति इतनी
मैं भी संहार कर पाऊं , तेरी तरह इन दुष्टों का
जो मुझको बस माने , मिट्टी का एक पुतला
जो भूल गए है , वो भी बस माटी का पुतला है
मेरे अंदर भी महाकाली है भूल गए हो तो याद करो
महाकाली जब आएगी तब सब कुछ मिटा जायेगी
तुम बस राख रह जाओगे
तब खुद से क्या पाओगे
छोड़ दो इस हिंसा को
वरना ऐसे पछताओगे
कोई न होगा साथ तुम्हारे
तुम अकेले ही रह जाओगे।
