नींद की पुकार
नींद की पुकार
अब वो पास आकर आखों से कहती है
अब तो मुझको आने दो इन पलको में समाने दो
क्यों तुम मुझसे दूर जा रही क्या मैंने किया बुरा
मुझको आने ना दो तो होगा सेहत संग बुरा
खोए कहा हो तुम इतने अपने कामों में
मुझे पूछते भी नही क्या मैं नही तेरी शामों में
वो पल क्या सुहाने थे जब तुम मेरे पास थे
ख्वाबों की दुनिया थी और कहानीयो की याद थी
जब भी में न आती तुम कितने रहते बेहाल
आ जाऊ मैं तब हो जाते थे तुम खुशहाल
अब मैं पास भी आऊ तो ऐसे भागते हो
मैं कोई अनजान हु आई करने तुमको परेशान
मेरे आने से जाने क्यों तुम्हे है इनकार
काम के बोझ ने मचा दिया क्यों हाहाकार
इस सबको मैं पल में मिटा सकती हूँ
बस सुनले तू मेरी ये पुकार।
