कलम
कलम
लेखक तो हम भी बहुत बुरे नही है
पर कोई कदर तो करे तब ना।
हाला की किताब लिखने की
कोशिश कई बार की हमने,
जब भी किताब लिखने की सोचते,
तो कलम हाथ का साथ छोड़ देती
ओर बच्चों के खिलखिलाते हुए चेहरे सामने आ जाते
उन खिलखिलाते हुए चेहरों को किताबों के बोझ तले
मुरझाते हुए देखने का मन नहीं करता
कागज पे उतरी स्याहि अपने आप कागज से उठकर
फिर कलम में मेजपर पहुंच जाती
किताब छोड़ कुछ ओर लिखना हो तो
कलम आपही हाथों में आ जाती
ओर फिर कागज पर अक्षरों का कुछ ऐसा
मेल बिठाती की हम भी दंग रह जाते
सोचते कैसा कमाल है ये कलम के इशारों पर कैसे ये
अक्षरों की मालाएं एक दूसरे से मिलकर शब्दों से हार बुनती है
ओर हम जैसे लेखकों की भटकी हुई
सोच को कविताओं के ढांचे में पिरोती है
ये कलम ही है जो हमे लेखक कहलाने का मान देती है
कहते है कलम तलवार है जो चल जाए तो
अच्छे अच्छी को मार गिरती है
पर हमारे लिए वो तलवार नहीं है
फूलों की वो नाजुक डाली है
जो हर सुख दुख में जैसे चाहे मुड़ जाती है
ओर हर खुशी और गम को प्यार ओर
सहजता से कागज पर उतार देती है
अपने दिल की हर तमन्ना को
कागज पर ही सही पूरा कर देती है।
