अभिलाषा
अभिलाषा
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है अभिलाषा तीव्र प्रभु दर्शन की तुम्हारे,
करतीं हूँ प्रार्थना जोड़ हाथ,
बुझा दो प्यास इन नेत्रों की,
कर दो ज्वाला शान्त हृदय की,
धर रूप राम का या फिर कृष्ण का,
हों सीता साथ या हो संग राधारानी का,
बसी है मूरत मन में तुम्हारी,
हूँ समर्पित चरणों में तुम्हारे,
लिये अन्तिम अभिलाषा दरस की तुम्हारे।
न मैं सीता, न मैं मीरा, न मैं राधा,
हूँ बस कलियुग की नारी साधारण,
डूबी प्रेम में तुम्हारे,
लिये आस प्रभु मिलन की,
किया उद्धार तुमने अहिल्या
का,
खा बेर झूठे शबरी के,
पहुँच दिया वैकुण्ठ माता शबरी को,
करा दो पार जीवन नैया मेरी भी,
हूँ समर्पित चरणों में तुम्हारे,
लिये अन्तिम अभिलाषा दरस की तुम्हारे।
हूँ अनभिज्ञ रीति से पूजा की प्रभु,
बस करतीं हूँ प्रेम अनन्य तुमसे,
है हृदय विशाल तुम्हारा,
हो दयालु क्षमाशील तुम,
कराया पार रावण को भवसागर,
किये होगें अपराध सैंकड़ों मैनें ,
कर दो क्षमा अपराध सब मेरे भी,
हूँ समर्पित चरणों में तुम्हारे,
लिये अन्तिम अभिलाषा दरस की तुम्हारे।