वक्त की महिमा
वक्त की महिमा
वक्त बनाये राजा औ रंक,
वक्त ही मानो तो भगवन।
राम को वनवास कराया,
पांडवों का राज्य विहीन बनाया।
द्रोपदी को दासी बनाया,
जनक दुलारी को कांटों पर चलाया।
मर्घट को हरिश्चन्द्र का वास बनाया,
पत्नी को पति के हाथ बिकवाया।
कृष्ण को आधी रात गोकुल पहुँचाया,
द्वारिकाधिश रणछोड़ नाम कहलाया।
शकुंतला को पति विहीन कराया,
भरत पुत्र जननी बनाया।
एक गौ पाने की खातिर राज पाठ छुड़वाया ,
विश्वामित्र को ब्रह्म ऋषि का पद दिलवाया।
भीष्म की अखंड प्रतिज्ञा ने कौरव वंश मूल नशाया,
अर्जुन को बृहन्नला रुप धराया।
अपनी आन-मान की खातिर राणा को वन-वन भटकाया,
स्वाभिमान व लाज की खातिर छबीली मनू ने प्राण गंवाया।
तेरी महिमा जाय न बखानी,
तू करता अपनी मनमानी।
पल में मिट्टी को सोना तू कर दे,
राजमहल को खंडहर बना दे।
इंसा की बिसात क्या,
ईश को भी कठपुतली सा नचाया।
तेरा कोई ओर न छोर,
तेरा ही बसेरा सब ओर।
