गज़ल
गज़ल
जीवन की इस भागदौड़ से थक चुका हूँ मैं
जाने कितने कठिन दौर से गुज़र चुका हूँ मैं
हर पल यहां एक जंग की तैयारी है ज़िंदगी
इन संघर्षों की आग से अब पक चुका हूँ मैं
पल में टूटता है विश्वास पल में टूटता रिश्ता
रिश्तों को समझने में और उलझ चुका हूँ मैं
दिखावटी ये दुनिया चेहरे पर लगा है चेहरा
मतलबी दुनिया से दरकिनार कर चुका हूँ मैं
जिंदगी के सफ़र में चलना है सबको अकेले
सबक ज़िंदगी का यह अब सीख चुका हूँ मैं!
