माँ
माँ
सह रही दर्द असीम वह औरत,
लिये आस देखने को मूरत बालक की,
चौंक पड़ती है सुन आवाज़ रोने की,
लगा सीने से नन्हें जीव को,
जाती है भूल कष्ट शारीरिक-मानसिक सभी,
पाकर संसार का सबसे खूबसूरत एहसास,
औरत से माँ बन जाने का।
भावना यही करती प्रेरित सदा,
करने को न्यौछावर समस्त अपना बालक पर।
बन प्रथम शिक्षक कराती शिक्षित सुसंस्कारों से।
लगा डुबकी हृदय के समुद्र में,
निकाल लाती राज़ छुपे सभी,
धर रूप घनिष्ठ मित्र का।
>
कर लेती झगड़ा भी,
करती हुई अभिनय भाई-बहन का।
है माँ सहनशील धरती समान,
तटस्थ है हिमालय की भाँति,
समुद्र की है गहराई उसमें।
बदल लेती रूप भवानी का
करने ऱक्षा बालक की।
है प्यार माँ का अनमोल,
अप्रतिबन्धित आकाश की भाँति।
माँ, हो तुम सृजनकर्ता मेरी,
सह कष्ट अनेक किया लालन-पालन मेरा,
उतार न पाऊँगा कभी ऋण तुम्हारा,
है कोटि कोटि नमन और धन्यवाद तुम्हें,
माँ हो तुम ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना। ।