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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"बादलों का मिजाज"

"बादलों का मिजाज"

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बादलों का मिजाज आजकल बदला-बदला है।

गायब है,धूप छ्लावा करना आज एक कला है।।

छिपा हुआ सबका ही आज असली रूप भला है।

आईने को भी आजकल सब लोगो ने छला है।।

जैसे बादल के हो जाने से सूर्य गायब होता है।

वैसे ही दिखावा होने से सत्य घायल होता है।।

बादल कुछ देर बाद छँट,सूर्य को आने देते है।

पर दिखावेवाले लोग साथ रहकर दगा देते है।।

लोगो का मिजाज समय के अनुसार बदला है।

स्वार्थ निकलने बाद,अपने काट देते गला है।।

पैसे पास हो शत्रु भी कहते,तू आदमी भला है।

गरीबी में तो अपने साये भी कर देते,हमला है।।

यह बादल भी यही पाठ सिखा रहे है,अगला है।

वक्त बुरा हो चुप रहो,चुप से ही टलेगी बला है।।

तुम चुपचाप करते रहो,कर्म सुजला-सुफला है।

चुप साधने के आगे पत्थर दिल भी पिघला है।।

बादलों का मिजाज,आजकल बदला-बदला है।

पर तू न रहना दोस्त,कभी ज़माने में नल्ला है।।

जो इस दुनिया मे होता है,आदमी कर्मजला है।

उसका तो खुद उसके दोस्त ही बजाते तबला है।।

कर्मवीरों के आगे तो,झुकी ज़माने की हर बला है।

कर्मवीरों ने ही सच मे साखी इतिहास को बदला है।।

मुसीबतों का चाहे कितनी बड़ो क्यों न हो टीला है।

कर्मवीर तोड़ देते,हार का परिश्रम से सिलसिला है।।



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