नदी
नदी
मैं चली इठला के झर झर
पिया मिलन मैं होके आतुर
जिधर चाहती घूमती मैं
बन के मस्ती की लहर
मैं चली इठला के झर झर
पर्वतों की चोटियों ने
रोकना चाहा मुझे जो
बनके झरना मैं झरी
बनके नादिया मैं चली
मैं चली इठला के झर झर
साथ मेरे झूमता है
आसमाँ को चूमता है
ये तरुण बनके अपना
संग मेरे बनके सपना
क्या ये पर्वत क्या ये वादी
सब मेरे है सुन रहे है
मेरे बहने का निर्मल ये स्वर
मैं चली इठला के झर झर
जिस डगर से मैं हूँ गुज़री
पुष्प सी सजती ये धरती
मैं लिए जा रही नयन मैं
अपने पिया से मिलने का स्वप्न
मैं चली इठला के झर झर
लक्ष्य मेरा सागर मिलन है
अस्तित्व मेरा भी है सागर
मैं हूँ पूरक अपने पिया की
जीवन ये मेरा तेरा सनम
मैं चली इठला के झर झर
जानती हूँ तुझ मैं मिलकर
गुम जाएगी मेरी हस्ती
जानती हूँ तुझको पाकर
ख़त्म होगा मेरा सफ़र
फिर भी तेरे प्यार मैं आतुर
प्यास मेरी बनके नादिया
तुझमैं मिलने को पल पल चली
मैं चली इठला के झर झर।