स्वाद
स्वाद
क्या और क़ैसे बनाती हो माँ तुम इतना प्यार कहां से लाती हो
क्या कोई स्वाद का ख़ज़ाना छुपा रखा है
तुमने अपने हाथों में कोन सा मसाला लगा रखा है
जब भी मैं सोचतीं हूँ तेरे बारे में नमक तेरी बातों का याद आ जाता है
तेरी तीखी डाँट सरसरी जगा जाता है
बड़ी बेचैन हो कर जब भी बैठ जाती हूँ
तेरी भीनी भीनी ख़ुशबू रसोई घर का दरवाज़ा और वो तेरा चाय के साथ पकोड़ा मन बहला जाता है
खीर में मानो तेरे मीठे बोलो का रस घुला लगता है
जलेबी और इमारती में कुछ फ़र्क़ ना दिखता है
मैं जितना भी कहूँ तुझे तो कम ही लगता है
मेरी आँखो का छोटा सा भी आंसू तुझे तो ग़म ही लगता है
तेरे प्यार ने मानो मुझे मोटा बना रखा है
हर निवाला तूने बड़े जतन से बना रखा है
में क़ैसे तुझ से दूरी को समझ जाऊ
तूने पल पल पकवानो का मेला लगा रखा है
कभी स्वाद से कभी प्यार से कभी बस हाथों की छुहान से तू मुझको हर पल समझ जाती है
वो तेरे हाथ की अदरक वाली चाय बहुत याद आती है
दुनिया भर का स्वादिष्ट खाना मुझको जरा ना भाता है
तेरे प्यार से बना वो खाना सब कुछ बुरा पल में भुला जाता है
में तुझे बहुत प्यार करती हूँ आज भी तेरे लिए पल पल तड़पती हूँ कहने को दो बेटे है मेरे फिर भी तेरे हाथों से बने प्यारे पकवानो को तरसती हूँ।
