हया शर्म
हया शर्म
हया शर्म मेरा गहना है
लाज का घूंघट औढ़े बैठी
तुम कहते में उड़ ना जाऊँ
कहीं कभी इस अंबर पर
तुम कहते मैं चुप हो जाऊँ
घूँघट में बस मैं खो जाऊँ
माना शर्म मेरा गहना है
माना हया से में खिलती हूँ
माना लाज की चादर औढ़े
हर घर की में मर्यादा हूँ
मुझे चुनौती पग पग मिलती
साबित खुद को अक्सर करने की
मुझे राह में मिले मुश्किलें
कूरीतियों ने पैर मेरे जकड़े है
कभी लाज की बनी लकीरें
कभी हया की बन्दिश घूरे
कभी शर्म के गहरे पर्दे
मेरी प्रतिभा को ढाँके है
अस्तित्व मेरा ग़र बने चुनौती
तुमने कुचले सपने मेरे
पूरक तेरी में जीवनसाथी
परम्परा में तुम उलझे हो
में दीपक तुम मेरी बाती
पर तुम मनन चिंतन में उलझे हो
संग तेरा मुझको हो हासिल
तो ही हया से में लड़ लूँगी
जो तुम साथ की चादर दोगे
तो में लाज शर्म छोड़ूँगी
नज़र मेरी तुझ को ही देखे
एक सहमति तेरी ज़रूरी
तू जोगी , मैं जोगन तेरी
तुझ बिन पिया में रहु अधूरी
हम दोनो जो चले बराबर
जो सपने हम दोनो देखे
फिर क्या शर्म हया लाज हों
खुद मिलकर परिभाषा जोढ़े
संस्कार हम दोनो माने
मानवता की करे पढ़ाई
हम दोनो संग संग खुश हों
लाज हया शर्म की ना हो दुहाईं
मूरख थे वो जो कहते थे
औरत ताड़न की अधिकारी
तुम जग को करके दिखला दो
हम दोनो एक सिक्के जैसे
में ग़र सिक्के का एक पहलू हूँ
तो तुम दूजी तरफ़ सम्भाले
घर गृहस्थी हम दोनो की है
में रथ हूँ तुम सारथी हो मेरे
मिल के जीवन अश्व को हांके
लाज हया शर्म हम दोनो माने
हम दोनो इसकी गरिमा जाने
जीवन के एक पहलू जैसा
इसकी सीमा को हम माने।
