ज़िंदगी और मौत के बीच
ज़िंदगी और मौत के बीच
ज़िन्दगी और मौत के बीच सिवाय तड़प के कुछ नहीं
एक अंधी गली की अंधी दौड़ है अंत है ना कोई छोर है।
गर्भ में नौ माह की तड़प और जन्म के क्षणों में असीम पीड़ा
आश्रित जीवन कुछ वर्षों तक फिर अपना ना कोई और है।
भागम भाग रेलम पेल ज़िंदगी एक तमाशा बन जाती है
ये आज की कहानी नहीं सब में यही है चाहे कोई दौर है।
न कोई सगा संबंधी ना कोई नाते रिश्तेदार हैं सब झूठ है
वाल्मीकि ऐसे ही नहीं हुए , उन्हें बनाने वाला कोई और है।
हवाओं के चक्र मौसम बदल देते हैं, वक़त तो इसका गुलाम है
पल-पल का हिसाब है इसके पास , जीवन कष्टमय और घनघोर है।