कुछ और बात होती .....
कुछ और बात होती .....
बे वक्त उसने हमसे, दामन छुड़ा लिया
कुछ पल ओर रुके होते तो, कुछ और बात होती।
बह गए वो वक्त के साथ, एक धारा की तरह
ठहरते तालाब की तरह तो, कुछ और बात होती।
उड़ते पक्षी का साथ छोड़ पंख, सिर्फ जमीन पाता है
आख़िरी उड़ान तक साथ होते तो, कुछ और बात होती।
कहीं ओर भी आशियाना, कब तक सलामत रहेगा
नींव की ईंट की तरह साथ रहते तो, बात कुछ और होती।
बीच मझधार में छोड़ गए, किनारा फिर भी पा लेंगे हम
अंतिम सफर तक वो साथ होते तो, बात कुछ और होती।

