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Maan Singh Suthar

Romance Others

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Maan Singh Suthar

Romance Others

ख़ामोशियां

ख़ामोशियां

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तुम नहीं जानते ये खामोशियां ख़ामोशी से मार डालती है

अब ज़िन्दा भी कहे तो क्या कहें ख़ुद में सिमटकर रह जाते हैं।


फिर मिलने की आस में चंद टुकड़े अन्न के ग्रहण कर लेते हैं

और फिर चौखट की ओर टकटकी लगाए देखते रह जाते हैं। 


दिन के उजाले में भी दिल में घोर अंधेरा लिए उजाला ढूंढते है

कब वो ज्योत जले दिल में फिर से बस यहीं सोचते रह जाते हैं। 


हमको क्यूं ना मिली हमारी चाहत शायद किस्मत का दोष रहा

कुछ उनकी बेवफाई को भी याद कर कर के घुट के रह जाते हैं। 


लब भी खामोश और ये सारा संसार भी ख़ामोशी का घर लगे

कोई क्या समझे वेदना, पीड़ा को पी कर ख़ामोश रह‌ जाते हैं। 



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