समय
समय
मन के अथाह सागर के किनारों पर कुछ निशान हैं
गुज़रे हुए वक्त की कोई अमिट छाप नज़र आतीं हैं।
कहां तक देख पाऊंगा इन नश्वर नयनों से मुश्किल है
जहां भी देखो वहां तक एक सूनी सहर नज़र आती है।
अकेला तो न आया था जहां में कुछ तो लाया था मैं
क्या लाया था बस वही तो एक कमी नजर आती है।
क़दम निशान तो छोड़ते हैं कितनी उम्र होती है उनकी
वक्त की एक लहर हर मुकाम मिटाती नज़र आती है।
मैं होने का वहम पीछे मुड़कर नहीं देखने देता कभी भी
सिमटे है कौन देखें पीछे वक्त की लहर नज़र आती है।
आना जाना और यादों का बहाना एक भ्रम ही तो है
समय बड़ा बलवान है हर चीज छोटी नज़र आती है।
वहम घमंड द्वेष और ईर्षा पतन की अग्रगामी कड़ियां हैं
समय ही समय बस समय की ही कहानी नज़र आती है।