मैं सिर्फ मैं बनना चाहती हूँ
मैं सिर्फ मैं बनना चाहती हूँ


मैं खुद से सीखना चाहती हूँ,
गिर कर खुद संभलना चाहती हूँ,
मैं "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।
मैं खुद अपनी राहों को चुनना चाहती हूँ,
उन पर गुमराह हो, फिर नई
राहें खोजना चाहती हूँ ,
मैं "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।
नहीं चलना चाहती मैं किसी के
आदर्श विचारों पर,
मैं खुद अपनी आदर्श बनना चाहती हूँ ,
मैं "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।
नहीं मंज़ूर मुझे किसी दूजे
पर बोझ बनना,
मैं अपना बोझ खुद अपने कांधों पर
उठाना चाहती हूँ
मैं "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।
नहीं करना चाहती किसी और के
आशियाने को उजागर<
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मैं अपने घोंसले के तिनके खुद
जुटाना चाहती हूँ,
मैं "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।
नहीं रखना चाहती किसी से
अपनी रक्षा की उम्मीदें
मैं अपनी अंगरक्षक खुद बनना चाहती हूँ ,
मैं "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।
खुद में खो कर मैं खुद को पाना चाहती हूँ,
खुद में एक आत्मविश्वास जगाना चाहती हूँ,
मैं "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।
हो सकता है शब्दों को जुड़ने में वक़्त लग जाये,
पर मैं अपनी कविता खुद लिखना चाहती हूं,
मैं " सिर्फ मैं " बनना चाहती हूँ ।।
गलत ही क्या है इसमें
मैं अगर "सिर्फ मैं" बनना चाहती हूँ ।।