इतिहास कब का बन चुके !
इतिहास कब का बन चुके !
फर्श से हम अर्श तक थे जा चुके ,
अर्श से अब फर्श पर हैं आ गये ।
सपने देखे थे जो हमने कल तलक ,
टूूूट कर इतिहास कब का बन चुके।।
खेेेत - खलिहानों से चलकर ,
शहर तक हम छा चुुुके थे ।
देेेश की सीमा को छोड़े ,
विश्व को अपना लिये थे।।
धरती अपनी , मूल्य अपने खो चुुके,
कुुुदरती अभिशाप के भागी बने ।
जड़ तो कब की ठूंठ बनकर रह गई ,
तने तो अब ख्वाब बनकर रह गये ।।
जीभ इतनी मनचली पहले न थी,
आत्म अनुशासन के शासन से बंधी थी ।
चर अचर सब अपने हित औ' मीत थे,
नीतिगत संस्कृति से सबकी प्रीत थी ।।
एक झोंंका कोरोना .. ऐसा चला ,
अपने अपनों से ही इतना डर गये ।
फिर शुरू करनी पड़ेेेगी यात्रा ,
जो पढ़ें थे आज सब कुछ धुुुल गये ।।
फर्श से हम अर्श तक थे जा चुके ,
अर्श से अब फर्श पर फिर आ गये ।
सपने देखे थे जो हमने कल तलक ,
टूट कर इतिहास कब का बन गये ।।