प्रकाश की आशा।
प्रकाश की आशा।
तेरे द्वार खड़ा झोली लेकर, झोली तो मेरी भर दीजिए
थक गया दुनिया की धारा में बह कर, अपनी शरण में लीजिए।
हृदय भरा दुर्भावों से, चहुदिश द्वेष गंध छाने लगा
चढ़ी जो चादर लोभ की, हृदय की निकटता मिटाने लगी।
जीव जो मन का पुतला बना, भोग -विलास में डूबता रहा
भोगते ही जीवन बीत गया, मन के बहकावे में चलता रहा।
जीवन अंधकार मय बना रहा,अब तो अंतर दीप जला दीजिये
हार गया हूँ भव-जाल जाल में फंस कर, प्रभु अब तो चरण रज दीजिए।
वृत्तियों ने चहुदिश घेरा, सद्भावना रहित मन हो गया
कुविचारों की आंधी ने ऐसा घेरा, अपने उद्देश्य को ही भूल गया।
बड़े भाग्य से यह काया मिली, जीने का हुनर ना सीख सका
सपनों की दुनिया ही संजोता रहा, अंतर्मन को ना देख सका।
"नीरज" की बेबसी पर कुछ रहम खाओ ,दवा कल्याण की कीजिए
बचे हुए इन सांसों के पल में, अपनी बाँहों में लीजिए।