"बिटिया मेरी"
"बिटिया मेरी"
सोच रहा था अंतर्मन से, कहलाएंगे पिता महान,
जन्म-मरण से पिंड छूटेंगे, करके बेटी का कन्यादान।
लाचार पिता के सच्चे दिल की, सुन लिए भगवान,
देकर आशीष बेटी का हमें, धन्य किये भगवान।
बुझे-बुझे से जीवन में, आई खुशियों की मुस्कान,
भींग गया जैसे एक-ही बून्द से, सारा रेगिस्तान।
बेटी खुशियों की सागर है, करें बेटी का सम्मान,
कहते हैं बेटा मान है, तो बेटी है गुमान।
ईश्वर की अलौकिक रचना, हम सबकी है पहचान,
इसी से बसता, इसी में समाया, है सारा जहान।
हाथ बढ़ाएं, बेटी बचाएं, बेटी है हमारी जान,
जिसके आने से खुशियां आती हैं, जाने से सुनसान।