कविता
कविता
उम्मीद की शाख पर खिलती,
इक नाज़ुक सी लड़की है !
जुगनुओं का घर है उसकी आँखों में,
फूलों सी वो बातें करती है !
पहनती है खुशबुओं का पैराहन
तितलियों के संग संग उड़ती है !
चाँद उतरता है जब जमीं पर
वो बादलों के झूले पर चढ़ती है !
फूलों के रंग कलम में भरकर,
ओस के मोती पलकों पे रखती है !
रेपिस्टों द्वारा मारी गई
अपनी नन्ही सखियों की कब्र पर जाकर
हर रात अपनी पलकों से
मोती तोड़कर रखती है !
हर रात उनके साथ कुछ पल के लिए
वो भी हर रोज मरती है !
किरणों के झुरमुट से झाँकते खुर्शीद ने
अभी अभी ये बोला है
उम्मीद के गर्भ में अब भी
ख्वाबों का एक घरौंदा है।