शतरंज की बाज़ी...
शतरंज की बाज़ी...
राह कठिन है जीवन की जैसे शतरंज की बाज़ी,
हर इक मोहरा है बाज़ीगर जीत के लिए वैरागी|
राजा, वजीर, ऊँट और हाथी सब की चाल निराली,
खड़े सिपाही भी इस जीवन में चलें चाल मतवाली|
कभी कोई खेल जाए दिल से देकर जाये बस धोखा,
कभी किसी ने दिल छोड़ दिमाग को ही दिया मौका।
धन, ऐश्वर्य, लोभ-लालच में हुए पराये सब रिश्ते,
जीत बाज़ी बना बाज़ीगर, माँ-बाप लगे अब सस्ते|
समय नहीं है स्वयं की खातिर, खेल रहे बस खेल,
बिना स्वार्थ अब कहाँ होता है रिश्तों से भी मेल|
इस शतरंजी दुनियाँ ने “इंसा” को किया है “पाज़ी”,
प्यार, रिश्ते, ख़ुशी, एहसास, हार गए सब बाज़ी|
