होले होले ही सही
होले होले ही सही
क्या कहा तुमने ?
आसमां नीला हो गया !
कब? कहाँ? कैसे ?
अभी कुछ दिनों पहले तक तो,
धुएं के सिवाय कुछ नहीं था।
फिर ऐसा क्या हो गया !
जो आसमान नीला हो गया।
कानों पर विश्वास नहीं होता,
चलो एक चक्कर लगा आता हूँ।
बहुत दिनों बाद उड़ रहा हूँ,
मैं स्वच्छंद हवा में।
लग तो रहा है कुछ, अजीब - सा . . .
पर क्या करूँ? क्योंकि. . .
आदत नहीं है ना! ऐसे,
साफ़- स्वच्छ आसमान में उड़ने की।
पता नहीं कब ? धुआँ दिखाई दे जाए,
बादलों में।
इसी डर से, शंका से,,
परों को अपने,
धीरे-धीरे फैला रहा हूँ।
मेरी ये शंका. . . बदल न जाए कहीं,
हकीकत में।
इसीलिए होले- होले ही सही,
पर हाँ ! उड़ जरूर रहा हूँ,
मैं इस स्वच्छंद हवा में।।