क्या पाया?
क्या पाया?
उतार-चढ़ाव,
ज्ञान मूर्खता,
प्रेम धोखा,
जीत हार से भरे हुए जीवन का
अंतिम निष्कर्ष यही पाता हूं।
जब हम लोग पैदा हुए थे
तब खाली हाथ थे
जो कुछ पाया है
यहीं पाया है
और जो खोया है
वह भी यहीं पाया हुआ खोया।
आज जो है
वह भी यहीं का है
इसका मतलब अभी भी हम फायदे में हैं।
अभी भी हमारा पाया हुआ
हमें मुनाफे में रख रहा है
तो फिर गवाने का दुख कैसा?
हां दुख तब होता है जब
हम अपने पाए हुए
और दूसरे के पाए हुए में
तुलना करते हैं
और पाते हैं कि
हमने उससे कम पाया।
हमें अपनी आवश्यकता देखनी है
अगर हम अपनी जरूरत के मुताबिक पा रहे हैं,
या पा चुके हैं
तब है बहुत अच्छी बात ।
एक दूसरे की नकल और दिखावा करने से
प्राप्त होगा दुःख
यही है जीवन का यथार्थ ।