गुमान
गुमान
दीए को है गुमान, कि है रोशन जहां उससे,
अंधेरा खाक कर, दीए ने वाह वाही ली,
गुमान मैं भूल बैठा, की उसमें तेल कितना है,
पल दो पल ही सही, लेकिन अंधेरा आ ही जायेगा,
दीया खुद को ढूंढेगा, अंधेरे में, की मैं कहा हूं,
आत्मचिंतन ही सरल होगा, की रोशनी उसकी नहीं,
जमीन आएगा, जो पल भर पहले आसमां मैं था,
सच तो है, आसमां मैं सूर्य का तेज आंखों को खुलने नहीं देता ।।
बनना है तो जुगनू बनो जो खुद से रोशन होता है
गुमान से दूर वो बस अपनो की पहचान करता है।
जमीन पर पैदा हुए हो, जमीन से जुड़े रहो,
नजर आसमां तक रहे, उसमें कोई भी गुमान ना हो।