खुद की तलाश
खुद की तलाश
मैं खुशबू नहीं और ना मंद मंद महकता यार हूँ ,
मैं रोशनी नहीं और ना सूर्य की आंखों में देखता यार हूँ,
मैं घटा नहीं और ना बादलों से लड़ता यार हूँ ,
मैं हवा नहीं और ना तूफानों में सीधे चलता यार हूँ,
मैं शीतल नहीं और ना चंद्रमा के चक्कर लगाता यार हूँ ,
मैं अंधेरा नहीं और ना अमावस का गुमशुदा चाँद हूँ ,
मैं पानी नहीं और ना समुद्र की गहराई मापता यार हूँ।
शायद
शायद मैं समय से लड़ता , समय में बंधी एक डोर हूँ
मैं कुछ नहीं माटी हूँ और माटी में ही मिलने को बेताब हूँ
कर्मो की सुलगती आग में, बची हुई राख हूँ
बस माटी में ही मिलने को बेताब हूँ
शब्दों के इस मायाजाल में, निशब्द हूँ
जिंदगी के हर साज में ढला हूँ, लेकिन खुद बे आवाज़ हूँ।
