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Hridesh Paliwal

Drama

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Hridesh Paliwal

Drama

जिंदगी वापस मिली

जिंदगी वापस मिली

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बचपन में जिंदगी जैसे, बस माँ का आँचल

माँ की गोदी जैसे, सबसे प्यारा घर।


फिर चलना सीखा तो खिलौनों से रिश्ता बढ़ा,

पापा की लाई गुड़िया को कोई छू भी ना पाए,

नए नए खिलौनों के लिए खूब आँसू बहाए।


फिर बोलना सीखा तो, स्कूल जाने में रोना,

माँ का दिया खाने का डिब्बा, पढ़ते पढ़ते ही खाना।


फिर धीरे धीरे दोस्ती का मतलब समझ आया,

क्लास रूम में हमेशा दोस्त के पास ही बैठना।


शैतानी में हमेशा एक-दूसरे के,

साथ ही जैसे जिंदगी हो।


फिर बोर्ड के एग्जॉ्म का नाम, पापा से सुना,

पढ़ लो बेटा कुछ बनना है तो, जैसे हर रोज सुना।


कुछ बनने की ललक ने डिग्री दिला दी,

खुद कमाने की चाहत ने नौकरी भी दिला दी।


घर से दूर नौकरी और बेफिक्र होकर मस्ती

ही जैसे जिंदगी हो।


फिर एक रोज माँ ने शादी के लिए पूछा,

तो जैसे मन में लड्डू फूटा।


एक रोज उनसे मुलाकात हुई तो

दिल जैसे ठहर गया हो।


जिंदगी का मतलब बस वही हो,

हर एक लम्हा उसके साथ हो।


अब पहले जैसी बेफिक्री नहीं थी,

घर समय से पहुँचने की जैसे आदत हो गई थी।


फिर एक रोज नन्हा फरिश्ता आया,

जिंदगी क्या है बस गोदी लेते ही समझ आया।


सच बोलूँ तो आँखों में ममता के आँसू थे,

उसकी एक मुस्कान मानो हर दर्द की दवा हो।


उसने मुझे वापस बच्चा बनाया,

माँ के आँचल को भूल सा गया था


उसने एक पल में एहसास कराया,

और मुझे मेरी जिंदगी से वापस मिलाया।।



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