चंद लम्हें
चंद लम्हें
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दो चार पत्थर उछाले तो थे मैंने आसमॉं में,
पर वो दौर-ए-आवारग़ी था,
जुनून गायब हुआ और सुकून भी,
कि दो पल भी थम ना पाए वो आसमॉं में,
लफ़्जों की अदायगी देखों जैसे,
चंद लम्हें ही लगे मुझे,
उस दौर-ए-आवारगी से, इस दौर आने मैं।
