है ज़ुबां पर ताला क्यूं ?
है ज़ुबां पर ताला क्यूं ?
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धर्म जाति, उंच नीच, अमीरी गरीबी मै उलझी है जिंदगी,
इन उलझनों से निकल, इंसानियत के धागे में बंध के देख।
है ज़ुबां पर ताला क्यों ?
बिखरे बिखरे रंगो को ओढ़े तो हर इंसान है,
उस रंग से पहले, रंग ए लहू से जुड़ के तो देख।
है ज़ुबां पर ताला क्यों ?
मंदिर मै जलता दीया हो या मस्जिद में होती अज़ान,
हाथ जोड़े या खुले हाथों से दुआ मांगते उस इंसान को,
सिर्फ और सिर्फ सजदे से जोड़ के तो देख।
है ज़ुबां पर ताला क्यों ?