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Lokeshwari Kashyap

Inspirational

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Lokeshwari Kashyap

Inspirational

रे मनवा तु भरम से निकल

रे मनवा तु भरम से निकल

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 रे मनवा तू भरम से निकल,

 इसके जरिए कर ले उसकी भक्ति,

 तेरी जिंदगी तर जाएगी l

 तू चाहे जितना इसे सजा ले, संवारे ले,

 यह तन है मिट्टी की गुड़िया,

एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगी l


 रे मनवा तू भरम से निकल,

 तू जितना इस पर जान छीड़केगा,

यह तुझे उतना ही तुझे तड़पाएगी l

 धरी रह जाएगी तेरी सारी चालाकी,

 यह तुझे मदारी सी मचाएगी l


 रे मनवा तू भरम से निकल

 कोई धाम नहीं है यह तेरा,

 यह बस एक खाली मकान है l

 माया नगरी की इस दुनिया में,

 बस सजी-धजी एक दुकान है l


 रे मनवा तू भरम से निकल,

 इस मायानगरी में देखो तो सही,

 ऐसी सैकड़ों सजी -धजी दुकानें हैं l

 यह तन तो उस माया पति की,

 चलती -फिरती मिट्टी की गुड़िया है l


 रे मनवा तू भरम से निकल,

 उसने दिया यह तन हमको,

उसकी भक्ति रस के पान को l

 अपना समझ बैठे हो तुम पगले ,

 उस दीनदयाल के दान को l


 रे मनवा तू भरम से निकल,

 कर ले उसकी निश्छल भक्ति,

 गौरवान्वित कर ले इस तन मन को l

 अर्पण कर दे सारे कर्म अपने,

 कर्म फल को त्याग कर,धारण कर तू धर्म को l



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