नव संवत्सर
नव संवत्सर
सूरज की पहली किरण के संग,
फिर होगा कल नव संवत्सर का आगमन।
प्रकृति की निर्बाध गति, यात्रा है उसकी अनन्त।
न बयार थमी, ना ही ज़मीं।
बरसों बरस धरा शीतल हुई,
सावन की घटा कभी थकी नहीं।
हे प्राणी, नववर्ष का तू भी आगाज़ कर।
जी ले ज़िन्दगी का हर इक पल।
थमें नहीं कभी तेरे कदम,
निरंतरता हो तेरा मकसद।
