विषैली है कट्टर पुरुषवादी मानसिकता, पुरुष नहीं
विषैली है कट्टर पुरुषवादी मानसिकता, पुरुष नहीं
बेटियाँ तो हमारा गर्व सदा से ही थीं।
हाँ, दिल में फिर भी एक टीस सी रहती थी।
पर आज देखो,
क्या अंतरिक्ष, क्या पुलिस, क्या राजनीति, कोई क्षेत्र तुमने अछूता न छोडा़।
गौरान्वित इतना किया हमें, अब भला किस बात की पीडा़।
पर सावधान।
तुम्हारी परीक्षा की असली घड़ी तो है अब ही,
परिपक्वता दिखाने का वक्त भी तो है यही।
डरती हूँ,
जिस कट्टर पुरुषवादी सोच को आज तक तुमने सहा,
वही सोच अब कहीं तुम न अपना लेना।
वरना्, कष्ट तो समाज को ही भुगतना होगा ना,
फिर पहले चाहे वो स्त्री थी, और अब पुरुष ही क्यों हो ना।
मेरी चेतावनी हर पल याद रखना,
आखिर दोष तो पहले भी पुरुष का नहीं,
बल्कि उस विषैली मानसिकता का ही था ना।
"कट्टर पुरुषवादी मानसिकता" तो होती ही है विषैली,
पर हर पुरुष में हो, यह आवश्यक नहीं।
ये तो गुण धर्म हैं, जिससे सोच हो जाती है विषैली,
धारण करने वाला फिर चाहे पुरुष हो, या फिर कोई स्त्री ही।
